Friday, 1 August 2025

मुंशी प्रेमचंद...

 

31 जुलाई हिंदी और उर्दू साहित्य के एक महान लेखक, “उपन्यास सम्राट” और महान कथाकार, विचारक, भारतीय ग्रामीण जीवन के सफल चितेरा, कलम के जादूगर और कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद उर्फ़ धनपत राय उर्फ़ नवाब राय की 145वीं जयंती पर उनके महान व्यक्तित्व की स्मृति को सादर नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि!
भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं, विशेषकर ग्रामीण जीवन, गरीबी, और सामाजिक मुद्दों को जन सामान्य की भाषा में अपनी रचनाओं के माध्यम से जीवंत कर देने वाले प्रेमचंद ने अपने साहित्य में मूलत: सामाजिक न्याय, समानता और मानव मूल्यों पर जोर दिया है। उनकी रचनाएँ आदर्शोन्मुख यथार्थवाद का जीवंत प्रमाण हैं। वे आज भी प्रासंगिक हैं और हमें उच्च विचार और यथार्थ के पथ पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। 
प्रेमचंद ने साहित्य को मनोरंजन का साधन मात्र न मानकर, समाजसुधार व राष्ट्रीय चेतना के विकास का एक सशक्त माध्यम माना। वे "साहित्य का उद्देश्य" में स्पष्ट रूप से कहते हैं - “साहित्य राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई नहीं बल्कि राजनीति के आगे मशाल दिखाते हुए चलने वाली सच्चाई है।" उनके बताए मार्ग  का अनुसरण ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।


प्रेमचंद की विभिन्न रचनाओं से अपनी कुछ पंक्तियां उदधृत कर रहा हूँ आपने भी कहीं न कहीं पढ़ी ही होंगी । आप भी पढ़िए और यादें ताजा कीजिये।

1️⃣सिपाही को अपनी लाल पगड़ी पर, सुन्दरी को अपने गहनों पर और वैद्य को अपने सामने बैठे हुए रोगियों पर जो घमंड होता है, वही किसान को अपने खेतों को लहराते हुए देखकर होता है।

2️⃣नाटक उस वक्त पास होता है, जब रसिक समाज उसे पंसद कर लेता है। बरात का नाटक उस वक्त पास होता है, जब राह चलते आदमी उसे पंसद कर लेते हैं।

3️⃣  उनकी अपनी जेबों में तो कुबेर का धन भरा हुआ है। बार-बार जेब से अपना ख़ज़ाना निकाल कर गिनते हैं और ख़ुश होकर फिर रख लेते हैं।

4️⃣हूँ। यह अफसरी मेरे और उसके बीच में दीवार बन गई है। मैं अब उसका लिहाज पा सकता हूँ, अदब पा सकता हूँ, साहचर्य नहीं पा सकता। लड़कपन था, तब मैं उसका समकक्ष था। यह पद पाकर अब मैं केवल उसकी दया योग्य हूँ। वह मुझे अपना जोड़ नहीं समझता। वह बड़ा हो गया है, मैं छोटा हो गया हूँ।

5️⃣अनाथों का क्रोध पटाखे की आवाज़ है, जिससे बच्चे डर जाते हैं और असर कुछ नहीं होता। 

6️⃣स्त्री पृथ्वी की भाँति धैर्यवान् है, शांति-संपन्न है, सहिष्णु है। पुरुष में नारी के गुण आ जाते हैं, तो वह महात्मा बन जाता है। नारी में पुरुष के गुण आ जाते हैं तो वह कुलटा हो जाती है।

7️⃣मैं अपनी स्वाधीनता न खोना चाहूँगा, तुम अपनी स्वतन्त्रता न खोना चाहोगी। तुम्हारे पास तुम्हारे आशिक आयेंगे, मुझे जलन होगी। मेरे पास मेरी प्रेमिकाएँ आयेंगी, तुम्हें जलन होगी। मनमुटाव होगा, फिर वैमनस्य होगा और तुम मुझे घर से निकाल दोगी। घर तुम्हारा है ही! मुझे बुरा लगेगा ही, फिर यह मैत्री कैसे निभेगी?

8️⃣वह निर्भीक था, स्पष्टवादी था, साहसी था, स्वदेश-प्रेमी था, निःस्वार्थ था, कर्तव्यपरायण था। जेल जाने के लिए इन्हीं गुणों की जरूरत है।

9️⃣लज्जा ने सदैव वीरों को परास्त किया है। जो काल से भी नहीं डरते, वे भी लज्जा के सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं करते। आग में झुंक जाना, तलवार के सामने खड़े हो जाना, इसकी अपेक्षा कहीं सहज है। लाज की रक्षा ही के लिए बड़े-बडे राज्य मिट गए हैं, रक्त की नदियां बह गई हैं, प्राणों की होली खेल डाली गई है।

🔟मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है ।


No comments:

Post a Comment

अपने बुजुर्गों का सम्मान करें....

 बुज़ुर्ग बूढ़े हो रहे हैं दौड़ता समय-चक्र गति से  तोड़ता मन मोह मति से नेत्र नम हो ताकते - से, ख़ुद को जैसे खो रहे हैं ।  बुज़ुर्ग बूढ़े हो...