शीषर्क :- वह किसान
विधा :- कविता
वह किसान
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●पेट जो भरता लोगों का
मिट्टी से फसल उगाता है,
उस किसान की खातिर तो
ये धरा ही उसकी माता है।
●आलस जरा न तन में रहे
कोई डर न मन में रहे
जितनी भी मुसीबत पड़ती है
बिन बोले वो चुपचाप सहे,
बस परिवार की खातिर ही
वो रहता मुस्कुराता है
उस किसान की खातिर तो
ये धरा ही उसकी माता है।
●न धूप सताए दिन की उसे
न काली रात डराती है
डटा रहे हर मौसम में
जब तक न फसल पक जाती है,
सूरज के उठने से पहले
वो पहुँच खेत में जाता है
उस किसान की खातिर तो
ये धरा ही उसकी माता है।
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